छत्तीसगढ़ में नाशपाती की खेती का सफल उत्पादन




छत्तीसगढ़ में नाशपाती की खेती का सफल उत्पादन
डॉ. पी. सी. चौरसिया
सहायक प्राध्यापक एवं वैज्ञानिक (उद्यानिकी)
इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय
कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, महासमुंद (छ.ग.)

प्रस्तावना
नाशपाती ऐसा फल है जोकि लगभग पूरे देश में गर्म आर्द्र उपोष्ण मैदानी क्षेत्रों से लेकर शुष्क शीतोष्ण ऊँचाई वाले क्षेत्रों में बिना किसी बाधा के उगाया जा सकता है। परन्तु इसकी खेती कुछ सीमित क्षेत्रों में ही की जा रही है। इसका मुख्य कारण फलों की भण्डारण क्षमता का कम होना, परिवहन सुविधा का अभाव तथा इसके संसाधन तथा परिरक्षण इकाईयों का न होना है। नाशपाती की खेती भारत में ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र से लेकर घाटी, तराई और भावर क्षेत्र तक में की जाती है| नाशपाती के फल खाने में कुरकुरे, रसदार और स्वादिष्ट होते हैं| इसके फल में पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में होते है| नाशपाती की खेती भारत में अधिकतर हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश और कम सर्दी वाली किस्मों की खेती उप-उष्ण क्षेत्रों में की जा सकती है| छत्तीसगढ़ के उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती बड़े पैमाने में की जाती है l कृषकों को नाशपाती की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करनी चाहिए| ताकि उनको इसकी फसल से अधिकतम और गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त हो सके| इंदिरा गाँधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर के अन्तर्गत कार्यरत आलू एवं समशीतोष्ण फल अनुसंधान केन्द्र, मेनपाट में नाशपाती की विभिन्न प्रजातियों का परीक्षण एवं मूल्यांकन किया गया है इसके परिणाम काफी उत्साहजनक है l इसके आधार पर नाशपाती की नवीन प्रजातियों को इस क्षेत्र में विस्तार किया जा सकता है l

जलवायु-
     समुद्रतल से लगभग 600 मीटर से 2700 मीटर तक नाशपाती का फल उत्पादन सम्भव  है। इसके लिए 500-1500 घण्टे शीत तापमान (7 डिग्री सेल्सियस से नीचे) होना आवश्यक है। निचले क्षेत्रों में इसकी बागबानी की सम्भावना उत्तर-पूर्व दिशा वाले क्षेत्रों में और ऊँचाई वाले दक्षिण-पश्चिम दिशा के क्षेत्रों में अधिक है। बसन्त ऋतु में पड़ने वाले पाले, कोहरे और ठण्ड से इसके फूलों को भारी क्षति पहुँचती है। इसके फूल 3.30 सेल्सियस से कम तापमान पर मर जाते है।
भूमि का चयन
नाशपाती की खेती के लिए मध्यम बनावट वाली बलुई-दोमट तथा गहरी मिट्टी की आवश्यकता होती है| जिसमें जल निकास सरलता से हो| दूसरे पर्णपाती फल पौधों की अपेक्षा नाशपाती के पौधे चिकनी और अधिक पानी वाली भूमि पर भी उगाये जा सकते हैं, परन्तु पौधों की जड़ों की अच्छी बढोतरी के लिए मिट्टी दो मीटर गहराई तक पथरीली या कंकर वाली नहीं होनी चाहिए|
प्रमुख प्रजातियाँ-
पत्थरनाख- यह कठोर नाशपाती और फ़ैलने वाली किस्म है l इसके फल सामान्य आकार के गोल और हरे रंग के होते हैं ,जिन पर बिंदियाँ बनी होती हैं l इसका गूदा रसभरा और कुरकुरा होता है l इसकी गुड़वत्ता ज्यादा समय के लिए भण्डारण होने के कारण ,दूरी वाले स्थानों पर आसानी से भेजा जा सकता है l यह किस्म जुलाई के आखिरी हप्ते में पाक कर तैयार हो जाती है l इस किस्म की औसतन पैदावार 150 किलोग्राम प्रति वृक्ष होती है l
पंजाब नख- यह कठोर नाशपाती और फ़ैलने वाली किस्म है l जो पत्थर नख से ली गयी है l इसके फल अंडाकार ,हलके पीले रंग के होते हैं l जिन पर बिंदिया बनी होती हैं l इसका गूदा रसभरा और कुरकुरा होता है l यह किस्म जुलाई के चौथे हप्ते में पक कर तैयार हो जाती है l इस किस्म की औसतन पैदावार 190 किलोग्राम प्रति वृक्ष होती है l
पंजाब गोल्ड- यह सामान्य नरम नाशपाती वाली किस्म है l इसके फल बढ़े , सुनहरी- पीले रंग के और सफ़ेद गुद्दे वाले होते l यह किस्म जुलाई के आखिरी हप्ते में पक कर तैयार हो जाती है l यह किस्म कई और उत्पाद बनाने के लिए भी उचित मानी जाती है l इस किस्म की औसतन पैदावार 80 किलोग्राम प्रति पेड़ होती है l
पंजाब नेक्टर- यह सामान्य नरम नाशपाती वाली किस्म है l इसके वृक्ष मध्यम कद के होते हैl इसके फल सामान्य से बढ़े आकार के, पीले-हरे रंग के और सफ़ेद गुद्दे वाले होते हैं l पकने के समय यह बहुत रसीले हो जाते हैं l यह किस्म जुलाई के अंत तक पक कर तैयार हो जाती है l इस किस्म की औसतन पैदावार 80 किलोग्राम प्रति वृक्ष होती है l
पंजाब ब्यूटी- यह सामान्य नरम नाशपाती वाली किस्म है l इसके वृक्ष मध्यम कद के और ऊपर की तरफ बढ़ने वाले होते हैं, जो पूरे वर्ष फल देते हैं l इसके फल सामान्य से बड़े आकार के पीले-हरे रंग के और सफ़ेद गुदे वाले होते हैं ,जो  ज्यादा रसीला और मीठा होता है l इसके फल जुलाई के तीसरे सप्ताह में पक कर तैयार हो जाते हैं l इस किस्म की औसतन पैदावार 80-100 किलोग्राम प्रति वृक्ष होती है l
बागुगोसा- यह सामान्य नरम नाशपाती वाली किस्म है l इसके फल हरे-पीले रंग के होते हैं, जिसका गूदा मीठा और क्रीम या सफ़ेद रंग का होता है l इसके फल अगस्त के प्रथम सप्ताह तक पक कर तैयार हो जाते है l यह दूरी वाले स्थानों पर ले आने के लिए अनुकूल किस्म है l इस किस्म की औसतन पैदावार 50-60 किलोग्राम प्रति वृक्ष होती है l
सभी किस्मों से पहले पकने वाली प्रजाति, पौधांे की बढ़ौतरी मध्यम रूप से, ऊपरी भाग फैलावदार, फल छोटे एवं गोल आकार वाले, मीठे व कम भण्डारण क्षमता वाले, जून महीने मंे फल पक कर तैयार।
स्टारक्रिमसन-
     फल मध्यम आकार का, आकर्षित लाल रंग का, अधिक समय तक रखने पर कलेजी रंग का, गूदा सफेद एवं नरम, मीठा, फल जुलाइ के दूसरे सप्ताह में पक कर तैयार, पौधे ओजस्वी, मध्य पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अनुकूल किस्म।

कान्फ्रेन्स-
     मध्य आकार का फल, छिलका हरा,  पकने पर पीला, गूदा सफेद हल्हे गुलाबी रंग का, मीठा, रसदार, अच्छी सुगन्ध वाला, पौधे की शाखाएं ऊपर की ओर फैलावदार, बढ़ौतरी मध्यम।
डायने डयूकोमिस-
     फल आयताकार, थोड़ी गोलाई वाला, छिलका खुरदरा, दानेदार, पीले रंगाका थोड़ा गेंहूँआ रंग वाला, गूदा मीठा, स्वादिष्ट, सुगंधित, कोमल, रसीला, पेड़ की वृद्धि दर मध्यम, पेड़ ऊपर की ओर सीधे बढ़ने वाला, सघन, अधिक फल देने वाला, फल अक्टूबर में पक कर तैयार हो जाते हैं।
कीफर-
     फल बड़े आकार का, सुनहरे पीले रंगा का, कुरकुरा, निम्न कोटि की गुणवत्ता वाला, संसाधन के लिए उपयोगी किस्म।
बागीचे की रूपरेखा और पौध रोपण-
सामान्य तौर पर नाशपाती के पौध का रोपण जनवरी से फरवरी माह में करना चाहिए l पौध रोपण हेतु एक वर्ष पुराने पौधे का उपयोग करना चाहिए l नाशपाती की खेती के लिए सामान्य रूप से बीजू मूलवृत पर तैयार किये गये पौधों के बीच 5 x 5 मीटर की दूरी और क्लोनल मूलवृत में यही दूरी 3 x 3 मीटर तक रखी जाती है| ढलानदार क्षेत्रों में नाशपाती के पोधे छोटे-छोटे खेत बनाकर लगाए जाने चाहिए, परन्तु समतल घाटियों वाले क्षेत्रों में वर्गाकार, षट्कोणाकार, आयताकार विधि, आदि से पौधे लगाये जा सकते हैं| जहाँ पहाड़ी क्षेत्र हो वहाँ कंटूर या ढ़लान विधि का प्रयोग करना चाहिए l
गड्ढा तैयार करना- नाशपाती के पौध रोपण हेतु 90x 90x 90 सेंटीमीटर आकार के गड्ढे नवंबर माह में ऊपर वाली मिट्टी भर कर छोड़ देना चाहिए एवं आखिरी समय में पौध लगाने से पहले 10-15 किलोग्राम गोबर की खाद, 1 किलोग्राम केंचुआ खाद 500 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट और क्लोरोपायरीफ़ॉस 50 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर पानी में डालना चाहिए l
खाद और उर्वरक-
     नाशपाती के लिए खाद तथा उर्वरकों की प्रयोगों पर आधारित वर्षानुसार उर्वरक तथा खाद डाली जाती है।
पौधे की उम्र
सड़ी हुई गोबर की खाद (किग्रा.)
यूरिया (ग्राम में)
सिंगल सुपर फॉस्फेट  (ग्राम)
पोटाश (ग्राम)
प्रथम वर्ष से तीन वर्ष
10-20
100-300
200-600
150-450
चार से छ: वर्ष
25-35
400-600
800-1200
600-900
सात से नौ वर्ष
40-50
700-900
1400-1800
1050-1350
10 वर्ष से अधिक
60
1000
2000
1500

खाद एवं उर्वरक का प्रयोग करने के लिए पहले पौध रोपण के लिए गोबर की खाद, सिंगल सुपर फॉस्फेट और म्यूरेट ऑफ पोटाश की पूरी मात्रा दिसम्बर के महीने में डालना चाहिए l यूरिया की आधी मात्रा फूल नकलने से पहले फरवरी के प्रथम सप्ताह में और बाकी की आधी मात्रा फल निकलने के बाद अप्रैल के महीने में डालना चाहिए l
सूक्ष्म पोषक तत्व- बोरान की कमी के लिए नाशपाती के पौधे संवेदनशील है तथा इसके अभाव में छोटी अवस्था के कच्चे फल फट जाते है। परिपक्वता अवस्था तक पहुँचते फल पर स्थान-स्थान पर दबाव पड़ जाता है। इसलिए बोरिक एसिड (1 ग्राम बोरिक एसिड प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें।
पौधे तैयार करना-
     सामान्य स्थिति में नाशपाती के पौधे कैन्थ या शियारा के बीज से बने रूट स्टॉक (मूलवृन्त) पर कलम करके तैयार किये जाते हैं। कैन्थ के बीजों को स्थानीय स्रोतों से एकत्र करके उन्हें बिना स्तरित (स्ट्रैटीफिकेशन) किये ही दिसम्बर-जनवरी में खेत में बो दिया जाता है। अधिक अंकुरण के लिए कैन्थ के बीजों केा 35-45 दिनों तक 2-50 सेल्सियस तापमान पर नमी वाले रेत में स्तरित भी किया जा सकता है। एक वर्षीय पौधे पर कलम उपरोपित की जाती है। फरवरी-मार्च में चिन्हा पैबन्द लगाया जाता है और जून-जूलाई में चश्मा लगाया जा सकता है।
रूट स्टॉक (मूलवृंत)
कैन्थ (लिमोनिया एसिडीसिमा)
     पश्चिमी हिमालय में यह एक जंगली पौधा है जो गहरी जड़ों वाला, सूखे की स्थिति को झेलने वाला तथा मध्यम बढ़त वाला होता है। कैन्थ में कल्ले बहुत निकलते हैं।

शियारा- (पायरस पशिया)
     शियारा पर पौधे कैन्थ की अपेक्षा अधिक बढ़ते हैं।
क्लोनल रूट स्टॉक
     आजकल नाशपाती का प्रमुख रूप से क्वींश एमूलवृंत पर प्रवर्धन किया जाता है। यह एक मध्य बौना मूलवृंत है जिस पर पौधों का आकार लगभग दूसरे मूलवृतों पर तैयार किये गये पेड़ों से 50-60 प्रतिशत कम होता है। इस मूलवृंत की योग्यता अन्य व्यावसायिक किस्मों से कम है।
ग्राफ्टिंग-सुरक्षित क्षेत्रों में जहाँ जंगली कैंथ हो वहाँ पर जनवरी-फरवरी में क्लैफ्ट ग्राफ्टिंग द्वारा नाशपाती की उन्नत किस्मों के पौधों में बदला जा सकता है। जंगली पेड़ों पर टाप वर्किग द्वारा कलम लगानी चाहिए।
कटाई-छटाई
आपस में उलझी हुई, सूखी, टूटी तथा रोग ग्रस्त शाखाओं को पेड़ों से अलग कर दें और सुसुप्तावस्था में शाखाओं के ऊपर का एक चौथाई भाग काट दें ताकि अधिक वानस्पतिक वृद्धि न हो| नाशपाती के पौधे पर बीमों पर फल आते हैं| इसलिए 8 से 10 वर्षों के पश्चात् इनका नवीनीकरण करना आवश्यक है ताकि स्वस्थ बीमे नई शाखाओं पर आ सके| इन शाखाओं का विरलन करके भी बीमों का नवीनीकरण कर सकते हैं| शाखा कटाई के उपरान्त कटे हुए भाग पर अलसी के तेल एवं ब्लू कापर का लेप लगाने से से बिमारियों से काफी सुरक्षा किया आ सकता है l
अंतर-फसलें
जब तक बाग में फल ना लगने लगे खरीफ ऋतु में उड़द, मूंग, तोरियों जैसे फसलें और रब्बी में गेंहू, मटर, चने या सब्जियां आदि फसलें अंतर-फसलों के रूप में इनकी खेती की जा सकती है| आलू एवं समशीतोष्ण फल अनुसंधान केन्द्र, मेनपाट में तीन वर्ष के प्रयोग के आधार पर रबी के मौसम में आलू, मटर, बरबट्टी, प्याज, टाऊ, गेंहू, हल्दी एवं अदरक की फसल  बहुत आसानी से लिया जा सकता है जो किसान भाइयों के लिए अतिरिक्त आय का जरिया बनाया जा सकता है l ठण्ड के समय नाशपाती सुसुप्त्वस्था होने के कारण पत्तियां गिरा देता है अतः बहुत आसानी से अंतर फसलें ली जा सकती हैं l
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार नियंत्रण हेतु पौधों के बीच में ग्लाइफोसेट 1.2 लीटर प्रति एकड़ और पैराकुएट 1.2 को 200 लीटर पानी में मिला के प्रति एकड़ में छिड़काव करना चाहिए |
  सिचाई- नाशपाती की खेती के लिए पूरेसाल में 800-1250 मिमी वितरित वर्षा की अरुरत होती है l रोपाई के बाद इसको नियमित सिंचाई की आवश्यकता होती है l गर्मियों में 5-7 दिनों के अन्तराल पर जबकि सर्दियों में 15 दिनों के अन्तराल पर सिंचाई करना चाहिए l दिसम्बर एवं जनवरी माह में जब पौधे सुसुप्तावस्था में हो तब सिंचाई नहीं करना चाहिए l टपक सिंचाई पद्दति से सिंचाई करने से काफी सिंचाई जल की बचत किया जा सकता है l फलदार पौधे को खुला पानी देने से इसके फल की गुणवत्ता और आकार में विकास होता है l
पौध संरक्षण-

कीट की रोकथाम

सैंजो स्केल- यह सेब का भयंकर नवजात रेंगते हुए स्केल को नष्ट नाशीकीट है। इससे कम प्रकोपित करने के लिए मई महीने में पौधों की छाल पर छोटे-छोटे सुई की नोक जैसे भूरे रंग के धब्बे नजर आते हैं और अधिक प्रभावित पौधों पर यही धब्बे एक दूसरे से मिलकर ऐसे दिखाई पड़ते हैं जैसे पौधे पर राख का छिड़काव किया गया हो। पौधों की बढ़ौतरी रूक जाती है और पौधे सूखने लगते है|
रोकथाम- इसके लिए क्लोरपाइरीफॉस 0.04 प्रतिशत, 400 मिलीलीटर 20 ईसी या डाइमैथोएट 30 ईसी 0.03 प्रतिशत 200 मिलीलीटर का 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें| अधिकतर क्षेत्रों में मई के महीने में यह छिड़काव करना उपयुक्त रहता है|
व्हाईट स्केल- यह कई क्षेत्रों में नाशपाती वृक्ष की छोटी शाखाओं, बीमों और फल के बाहरी दलपुंज में देखा जाता है| स्केल के प्रकोप से पौधे के भाग प्रायः सूख जाते हैं|
रोकथाम- प्रभावित पौधों पर सितम्बर और अक्तूबर में फल तोड़ने के बाद क्लोरपाइरीफॉस का छिड़काव करें| घोल से पूरा पौधा तर हो जाना चाहिए| यदि छिड़काव के 24 घण्टे के भीतर वर्षा हो जाये तो छिड़काव दुबारा करें| एक बड़े पेड़ के लिए 6 से 8 लिटर घोल की आवश्यकता होती है|
चेपा और थ्रिप्स- यह नाशपाती पौधे के पत्तों का रस चूसते है, जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं| यह शहद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं, जिस कारण प्रभावित भागों पर काले रंग की फंगस बन जाती है|
रोकथाम- फरवरी के आखिरी हफ्ते जब पत्ते झड़ना शुरू हो तो इमीडाक्लोप्रिड 60 मिलीलीटर या थाईआमिथोकसम 80 ग्राम को प्रति 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें| दूसरी तर छिड़काव मार्च महीने में करें और तीसरा छिड़काव फल के गुच्छे बनने पर करें|
मकोड़ा जूं- यह नाशपाती के पौधे के पत्तों को खाते है और इनका रस चूसते है, जिस से पत्तें पीले पड़ने शुरू हो जाते है|
टिड्डा: इसका हमला होने पर फूल चिपकवे हो जाते है और और प्रभावित भागों पर काले रंग की फंगस नम जाती है| इसकी रोकथाम के लिए कार्बरील 1 किलो या डाईमेथोएट 200 मि.ली. को 150 लीटर पानी में मिला कर स्प्रे करें|
चेंपा और थ्रिप्स: यह पत्तों का रस चूसते है, जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं| यह शहद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं, जिस कारण प्रभावित भागों पर काले रंग की फंगस बन जाती है|
इसकी रोकथाम के फरवरी के आखिरी हफ्ते जब पत्ते झड़ना शुरू हो तो इमीडाक्लोप्रिड 60 मि.ली. या थाईआमिथोकसम 80 ग्राम को प्रति 150 लीटर पानी में डालकर स्प्रे करें| दूसरी स्प्रे मार्च महीने में पूरी तरह से धुंध बनाकर करें और तीसरी स्प्रे फल के गुच्छे बनने पर करें|

रोग की रोकथाम

जड़ का गलना- इस बीमारी के साथ पौधे की छाल और लकड़ी भूरे रंग की हो जाती है और इस पर सफेद रंग का पाउडर दिखाई देता है| प्रभावित पौधे सूखना शुरू हो जाते है| इनके पत्ते जल्दी झड़ जाते है|
रोकथाम- कॉपर आक्सीक्लोराइड 400 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिला कर मार्च महीने में छिड़काव करें| जून महीने में दोबारा छिड़काव करें| कार्बेन्डाजिम 10 ग्राम+ कार्बोक्सिन(वीटावैक्स) 5 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिला कर, इस घोल से पूरे वृक्ष को दो बार तर कर दें| पहला अप्रैल से मई मानसून से पहले और दूसरा मानसून के बाद सितंबर से अक्तूबर में डालें| इसके बाद पौधे की हल्की सिंचाई करें|
नाशपाती का धफड़ी रोग इस बीमारी के साथ पत्तों के निचली और काले धब्बे दिखाई देते है| बाद में यह धब्बे स्लेटी रंग में बदल जाते है| प्रभावित भाग टूट कर गिर जाते हैं| बाद में यह धब्बे फलों के ऊपर दिखाई देने लगते है| इसकी रोकथाम के लिए ताम्रयुक्त फफूंदीनाशक 2 ग्राम प्रति लीटर की स्प्रे पौधे की निष्क्रिया समय से शुरू करके पत्ते झड़ने के समय तक 10 दिनों के फासले पर करें| प्रभावित फलों, पौधे के भागों को हटा दें और खेत से दूर ले जाकर नष्ट कर दें|
फल तुड़ाई
नाशपाती की खेती से फल जून के प्रथम सप्ताह से सितम्बर के मध्य तोड़े जाते है| नज़दीकी मंडियों में फल पूरी तरह से पकने के बाद और दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए हरे फल तोड़े जाते है| तुड़ाई देरी से होने से फलों को ज्यादा समय के लिए स्टोर नहीं किया जा सकता है और इसका रंग और स्वाद भी खराब हो जाता है| नज़दीकी मंडियों में फल पूरी तरह से पकने के बाद और दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए हरे फल तोड़े जाते है| तुड़ाई देरी से होने से फलों को ज्यादा समय के लिए स्टोर नहीं किया जा सकता है और इसका रंग और स्वाद भी खराब हो जाता है| नाशपाती की कठोर किस्म पकने के लिए लगभग 145 दिनों की जरूरत होती है, जबकि सामान्य नरम किस्म के लिए 135-140 दिनों की जरूरत होती है|
कटाई उपरान्त
कटाई के बाद फलों की छंटाई करें| फिर फलों को फाइबर बॉक्स में पकने, स्टोर या मंडी ले जाने के लिए पैक करें| फलों को 1000 पी पी एम इथेफान के साथ 4-5 मिन्ट के लिए उपचार करें या  इनको 24 घंटों के लिए 100 पी पी एम इथाइलीन गैस में रखें और फिर 20° सै. पर स्टोर करें दें|| 0-1°सै. तापमान और 90 -95 % नमी में फलों को 60 दिन के लिए स्टोर करके रखा जा सकता है|

पैदावार
नाशपाती की खेती से साधारणतया नाशपाती के एक वृक्ष से 1 से 2 क्विटंल तक फल प्राप्त हो जाते है, अतः प्रति हैक्टर क्षेत्र से 400 से 750 क्विंटल फल उत्पादित हो सकते है|
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