छत्तीसगढ़ में अनानास की खेती की व्यापक संभावनाएं
डॉ. पी. सी.
चौरसिया
सहायक
प्राध्यापक (उद्यानिकी)
इंदिरा गाँधी
कृषि विश्वविद्यालय
कृषि
महाविद्यालय एवं अनुसन्धान केन्द्र, महासमुंद (छ.ग.)
अनानास एक व्यवसायिक एवं स्वास्थवर्धक फल है जो
सुपाच्य एवं विटामिन युक्त ए.,
बी.,
सी.,
कैल्सियम, मैग्नीशियम,
पोटाशियम एवं लौह युक्त फल है। इस फल से रस (जूस), डिब्बा बंद मोरब्बा, जैम, शरबत,
रंग,
दवाई एवं सीरप भी तैयार
किया जाता है। अनानास एक रसीला एवं स्वादिष्ट फल होने के कारण इसकी मांग देश एवं
विदेशों के बाजारों में सालों भर रहता है तथा भारत में कुछ गिने चुने राज्यों यथा
असम, मेघालय,
त्रिपुरा,
मणिपुर,
पश्चिम बंगाल के अलावा बिहार राज्य में कुछ स्थान
में इसकी खेती बहुत आसानी से की जाती है। छत्तीसगढ़ के उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र एवं
मैदानी क्षेत्रों में इसकी खेती की जा सकती है । सरगुजा जिले के अंतर्गत मेनपाट
में अनानास की खेती के लिए मिट्टी एवं जलवायु बहुत ही उपयुक्त है। तथा यहाँ राज्य
के अन्य जिलों के अपेक्षा तापमान न्यूनतम एवं वर्षापात अधिकतम है जो अनानास की
खेती के लिए सर्वोत्तम माना जाता हैं। छत्तीसगढ़
का उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र मैनपाट समुद्र तल से 1075 मीटर की ऊँचाई
पर स्थित है यहां पर ठण्ड में न्यूनतम तापमान शुन्य डिग्री से. तक रहता है एवं
अच्छी वर्षा भी होती है जो अनानास की खेती के लिए काफी उपयुक्त है । इन्दिरा गांधी
कृषि विश्वविद्यालय के अन्तर्गत आलू एवं समशीतोष्ण फल अनुसंधान केन्द्र, मैनपाट
में अनानास की प्रजातियों का परीक्षण एवं मूल्यांकन किया गया है। जिसका परिणाम
उत्साहजनक है। केन्द्र में अनानास की दो प्रजातियों का परीक्षण किया गया है इनमें क्वीन एवं क्यू दोनों प्रजातियों का
परिणाम बहुत अच्छा है। परिणाम के आधार पर इसका विस्तार जिले के अन्य
प्रखण्डों में भी सफलता पूर्वक किया जा सकता है, जिससे न केवल किसानों की आर्थिक
दृष्टि से पिछड़ा होने के कारण खासकर आलू एवं टाऊ के बाद नगदी फसल के रूप में अनानास
की खेती को बढ़ावा देने से किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।
जलवायु
अनानास की खेती के लिए सर्वोत्तम जलवायु उसे माना
जाता है। जहाँ की तापमान 20 डिग्री सें. से 35
डिग्री सें. तक रहता है। दिन और रात के तापमान में
कम से कम 4 डिग्री सेल्सियस का अंतर आवश्यक समझा जाता है। इसके
साथ-साथ वार्षिक वर्षापात 100
से 150
सेंटीमीटर उपयुक्त माना जाता है। इस तरह नमी युक्त
उष्ण कटिबन्धीय वर्षा क्षेत्र को अनानास की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है।
अनानास की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी.एच
5.0-6.0 हो उपयुक्त माना जाता है। इसके अलावा पानी ठहराव की
दशा इसकी खेती के लिए उचित नहीं होता है ।
डिस्क हैरो से दो जुताई एवं कल्टीवेटर से दो जुताई
जनवरी माह में एवं देशी हल से दो जुताई फरवरी के प्रथम सप्ताह में की जाती है।
जुताई पश्चात समतलीकरण कर खेत को तैयार कर दिया जाता है।
दूसरी एवं तीसरी जुताई के समय 40-50 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से चूना एवं 3 से 4
किलोग्राम फियूराडॉन या फौरेट का प्रयोग करना आवश्यक
है। जस्ता की कमी को पूरा करने के लिए अंतिम जुताई के समय 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट एवं 4 किलोग्राम बोरोन का प्रयोग करना आवश्यक है। कम्पोस्ट प्रति एकड़ 120 क्विंटल का उपयोग किया जाना उत्तम है।
अनानास की विभिन्न प्रजातियाँ पायी जाती है जिसमें
क्यू, ज्वाइंट क्यू, क्वीन, मारीशस, जलधूप,
लखत इत्यादि है। आलू एवं
समशीतोष्ण फल अनुसंधान केन्द्र, मैनपाट
में मुख्य रूप से क्यू एवं क्वीन प्रजातियों का मूल्यांकन किया गया है।
इसका प्रसारण वानस्पतिक रूप से स्लिप तथा अन्तः
भूस्तारी के द्वारा किया जाता है। अनानास की खेती के लिए बीज के रूप में मुख्य रूप
से पौधे का साईड पुत्तल (सकर) गुटी पुत्तल (स्लिप) एवं क्राउन का उपयोग होता है।
समय एवं उत्पादन की दृष्टि से साईंड पुत्तल एवं गुई पुत्तल को उत्तम माना जाता है।
बीजोपचार के लिए मुख्य रूप से कार्बेन्डाजिम घोल 4 ग्राम प्रति लीटर या डाईथेन एम्-45 2 ग्राम दवा
प्रति लीटर पानी के घोल का उपयोग किया जाता है।
भारत के पूर्वी भाग में इसका रोपण अक्टूबर – नवम्बर
में तथा दक्षिण भारत में जून-जुलाई में करते है। इसकी रोपाई फूल आने के 12 से 15
माह पूर्व की जाती है जो मुख्य रूप से दिसम्बर से
अप्रैल तक होती है। परन्तु साल भर उत्पादन के लिए इसकी रोपाई जून-जुलाई और अक्टूबर-नवम्बर में भी की जाती है। इसमें
मुख्य रूप से फूल आने का समय जनवरी से मार्च होता है। आलू एवं समशीतोष्ण फल अनुसंधान केन्द्र, मैनपाट में पौध रोपण
का उपयुक्त समय फरवरी-मार्च एवं जून- जुलाई है ।
बीज का रोपण दोहरी कतार में की जाती है। जिसमें पौधे
से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर एवं कतार के कतार की दूरी 90 सेंटीमीटर होती है। जिसमें 22 सेंटीमीटर गहरा एवं 30 सेंटीमीटर व्यास का गड्ढा किया
जाता है। यह सघन बागवानी के लिए एक आदर्श फल है ।
अनानास की खेती में यदि अति सघन रोपण पद्दति अपनाते
हैं तो उससे प्रति हेक्टेयर अधिक उपज प्राप्त हो सकती है । इसके अलावा कम खरपतवार
संक्रमण, सन बर्न से फलों की सुरक्षा, प्रॉपग्यूल्स (चूसक और स्लिप्स)/यूनिट क्षेत्र का
उत्पादन बढ़ जाता है और पौधों के गैर-आवास उच्च घनत्व वाले रोपण के फायदे जोड़े
जाते हैं। अति सघन रोपण पद्दति से 22.5 x 60 x 75 सेमी. की दूरी पर रोपण करने पर
कुल 63,700 पौधे प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है ।
पोषण
रोपाई के पूर्व प्रति गड्ढा 1 किलो सड़ा हुआ कम्पोस्ट 2-3 ग्राम,
फास्फेट एवं 6
ग्राम पोटाश डालकर स्वस्थ स्लिप की रोपाई की जाती
है। इसके अलावा रोपाई के समय प्रति पौधा 12-15 ग्राम नाइट्रोजन व् इतनी ही
मात्त्रा में पोटाश दिया जाता है
रोपाई के 40-50
दिन पश्चात प्रथम निकाई गुड़ाई 80-90 दिनों के पश्चात दूसरी 110-120 दिनों के पश्चात,
तीसरी 200-210
दिनों के पश्चात,
चौथी 300-310
दिनों पश्चात पांचवी व अंतिम निकाई कर अनावश्यक
खरपतवारों को नियंत्रित किया जाता है।
मल्चिंग या पलवार
काली पालीथीन का उपयोग करके खरपतवार का नियंत्रण एवं उपज की मात्रा को
बढाया जा सकता है। इसमें सिंचाई जल की आवश्याकता के अनुसार टपक सिंचाई को भी आसानी से
अपनाया जा सकता है।
प्रथम निकाई गुड़ाई के पश्चात प्रति पौधा 2 ग्राम नत्रजन का उपयोग किया जाता है। दूसरे
निकाई-गुड़ाई के तुरन्त बाद 2
ग्राम नत्रजन एवं 6 ग्राम पोटाश प्रति पौधा का
व्यवहार कर पौधों के जड़ों पर मिट्टी चढ़ा दिया जाता है। इसके पश्चात दो निकाई-गुड़ाई
के बाद प्रति पौधा 2.5
ग्राम नत्रजन का उपयोग किया जाता है एवं अंतिम निकाई-गुड़ाई
के बाद 3 ग्राम नत्रजन का उपयोग किया जाना उत्तम होता है।
सिंचाई जल के साथ उर्वरक का प्रयोग करना काफी लाभदायक होता है।
पौध संरक्षण
कीट प्रबंधन
अधिकांशतः अनानास की फसल में कीट का प्रकोप कम देखा
गया है फिर भी आवश्यकता अनुसार 2-3 बार सिस्टमेटिक दवा का छिडकाव करते रहना चाहिए। अनानास
में आमतौर पर मिलीबग एवं स्केल कीट का प्रकोप कभी-कभी देखा गया है।
रोग प्रबंधन
अनानास की फसल में स्टेम रोट बीमारियों का प्रकोप
अधिक पाया जाता है इसके अलावा और विमारियां कम लगती हैं। अतः स्टेम रोट वीमारी का नियंत्रण
के लिए उचित जल निकास एवं पौध रोपण से पहले बोर्डो मिक्चर के घोल में स्लिप को डुबो
कर रोपण करना चाहिए।
सालभर उत्पादन प्राप्त करने के लिए पौधों में 50 मिलीलीटर कैल्शियम कारबाईड का घोल प्रति पौधा या 20 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल अथवा 0.25 मिलीलीटर इथरेल प्रति पौधा का छिड़काव किया जाता है।
फूल आने के 2 माह बाद एन.ए. ए. और प्लानोफिक्स 200-300
पी.पी.एम. का प्रयोग फल में उत्तम वृद्धि लाता है जो
कि 15-20 प्रतिशत आंका गया है।
कृषि लागत: प्रति
पौधा 8-10 रु.
प्रति एकड़ लगभग 96 हजार
से 1 लाख
20 हजार
रु. तक आता है।
पौधरोपण के 12
से 15
माह बाद अनानास के पौधों में फूल आता है तथा 15 से 18
माह बाद अनानास का फल परिपक्व हो जाता है। यह अवधि
फल के प्रभेदों पर भी निर्भर करता है।
पौधों को मजबूत खड़ा रहने की दृष्टि से समय-समय पर
मिट्टी चढ़ा दी जानी चाहिए जिससे पौध सीधा खड़ा रहे इसके अतिरिक्त जड़ें उथली होने के
कारण वर्षा के दौरान पौधे झुके नहीं तथा वृद्धि प्रभावित न हो।
अनानास की फसल में हाथ से गुड़ाई कर मिट्टी चढ़ाते समय
खरपतवार निकाल दिए जाते है, ताकि दोनों कार्य एक साथ हो जाएं वैसे रसायनिक विधि से
खरपतवार/नियंत्रण के लिए ब्रोमेसिल + डाईफ्यूरान प्रत्येक 2 किग्रा./हें. की दर से खरपतवार जमने के पूर्व आधी
मात्रा एवं आधी मात्रा पहले प्रयोग 5
माह बाद प्रयोग किया जाए तो खरपतवारों पर पूरा
नियंत्रण किया जा सकता है।
अनानास की फसल में मल्चिंग का महत्व स्पष्ट देखा गया
है। मल्चिंग के रूप में काली पालीथीन एवं लकड़ी का बुरादा का प्रभाव सफेद पालीथीन
एवं पुआल की मल्चिंग से ज्यादा अच्छा पाया गया है। मल्चिंग भूमि में नमी के
संरक्षण के लिए आवश्यक होता है। इसके अलावा सूखे हुए घास का उपयोग मल्चिंग के लिए
कम खर्च में उपयोग किया जा सकता है।
शुरुआती दौर में पौधों से सकर्स वृद्धि करते
हैं जबकि फलों के विकास के समय स्लिप्स वृद्धि करते हैं। फलों के वृद्धि के समय स्लिप्स
के विकास से फलों की परिपक्वता में देरी होती है। इसलिए यथा समय सकर्स एवं स्लिप्स
को मुख्य पौधे से हटाते रहना चाहिए।
वैसे तो अनानास की खेती प्राय: असिंचित क्षेत्रों
में की जाती है। किन्तु सिंचाई की सुनिश्चित व्यवस्था होने पर फलों का विकास एवं
गुणवत्ता में वृद्धि पायी गयी है। टपक सिंचाई एवं स्प्रिंकलर सिंचाई भी काफी मात्र
में लाभदायक होता है ।
एन.ए.ए. आधारित पादप हार्मोन्स जैसे प्लेनोफिक्स तथा
सेलीमोन 10-20 पीपीएम की दर से पुष्पन एवं फलत वर्ग बढ़ाता है। कुछ
ग्रोथ रेगुलेटर्स फल को पकाने के लिए इथरेल आदि का प्रयोग भी किया जाता है। मुख्य
मौसम में एक समान फूल (80% से अधिक) प्राप्त करने के लिए, पौधों से फूल लगाने से एक महीने पहले एथ्रेल (@ 100 पीपीएम) घोल लगाया जाता है।
अनानास के पौधे रोपने के 12-15 महीने बाद फूल आते हैं और फल के विकास के दौरान
इस्तेमाल की जाने वाली प्रचलित सामग्री के पौधे की किस्म, रोपण के समय और प्रकार के आधार पर बोने के 15-18 महीने बाद फल तैयार हो जाते हैं। प्राकृतिक
परिस्थितियों में, अनानास मई-अगस्त के दौरान फसल के लिए आता है। फल
आमतौर पर फूलने के लगभग 5 महीने बाद पकते हैं। कटाई में अनियमित फूल आने का
परिणाम लंबी अवधि में फल मिलता है।
फलों की कटाई कैनिंग उद्देश्य के लिए की जाती है जब
विकासशील फलों के आधार में थोड़ा बदलाव होता है। टेबल उद्देश्य के लिए उपयोग किए
जाने वाले फलों को तब तक बरकरार रखा जाता है जब तक वे सुनहरे पीले रंग का विकास
नहीं करते हैं। एक फसल
लेने के बाद पौधे की फसल को मिट्टी की स्थिति के आधार पर तीन से चार साल तक रटून
फसल के रूप में रखा जा सकता है। उच्च घनत्व रोपण में रटून से पता चलता है कि पहली
और दूसरी रटून में फल का औसत वजन पौधे की फसल के लिए क्रमशः 88% और 79% है।
भण्डारण
कटाई के बाद 10-15 दिनों के लिए मुकुट वाले फलों को
नुकसान के बिना रखा जा सकता है। जब फलों को लंबी दूरी तक या कई दिनों तक ले जाया
जाता है, तो पकने
की प्रक्रिया को धीमा करने के लिए प्रशीतित परिवहन की आवश्यकता होती है। अनानास 20
दिनों की अवधि के लिए अच्छी तरह से संग्रहीत किया जा सकता है जब 10-130
सेंटीग्रेट पर प्रशीतित किया जाता है। सबसे अच्छा भंडारण 7.20 सेंटीग्रेट
और 80 या 90% सापेक्ष आर्द्रता पर होता है।
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